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1/1 धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे

अध्याय १ श्लोक १ -- धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः।। मामका पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय।।१।। -- अधिक विस्तार से जानने के लिए मेरा गीता से संबधित अन्य ब्लॉग देख सकते हैं। यह ब्लॉग प्रारंभ करने का प्रयोजन केवल इतना ही है कि श्रीमद्भगवद्गीता को अध्याय और श्लोक के अनुसार क्रमबद्ध रूप से एक स्थान पर उपलब्ध किया जा सके।  ***

Arjuna अर्जुन

Arranged Orderly.  I've already the following blog about   Shrimadbhagvadgita / श्रीमद्भगवद्गगीतावद्गीता That is quite useful enough for me but looks to be rearranged / managed, and in order to look for a ready-reference also I need a new one, so I am starting this one. I'm thinking of writing the post in the sequence of the order of the chapters and the stanzas according to the original text. This first post is however in the traditional way of beginning a sacred text. पार्थार्जुनकौन्तेयगुडाकेशः धनञ्जय।। भरतर्षभपरन्तपमहाबाहुः शत्रुञ्जयः।। अहिंसासत्यास्तेयब्रह्मचर्यापरिग्रहाः।। पञ्चैते धर्माः स्युः यमाः ये योगनिगदिताः।। पार्थ, अर्जुन, कौन्तेय, गुडाकेश और धनञ्जय अर्जुन के उपरोक्त प्रसिद्ध नाम हैं जिन्हें श्रीमद्भगवद्गीता में पर्याय के रूप में वर्णन है। पृथा (कुन्ती-पुत्र) होने से यह अर्जुन के शारीरिक स्वरूप का द्योतक है। अर्जुन शब्द हृदय का द्योतक है जिसका हृदय शुद्ध है, इसे आयुर्वेद में वर्णित अर्जुन नामक वनस्पति के सन्दर्भ में भी देखा जा सकता है जिसे ओषधि के रूप में हृदयदौर्बल